यूट्यूब वीडियो स्क्रिप्ट: मुर्शिदाबाद हिंदू विरोधी हिंसा - हाईकोर्ट रिपोर्ट ने TMC की भूमिका उजागर की**
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"मुर्शिदाबाद नरसंहार: हाईकोर्ट रिपोर्ट ने खोला TMC का सच |
परिचय (0:00 – 2:00)
"एक बाप और उसका मासूम बेटा—दोनों को बेरहमी से कुल्हाड़ी से काट डाला गया। चीखें गूंजती रहीं, लेकिन कोई मदद के लिए नहीं आया। हिंदुओं के घर चुन-चुन कर जलाए गए, जैसे कोई राक्षसी योजना पहले से बनाई गई हो। पानी के कनेक्शन तक काट दिए गए, ताकि कोई आग न बुझा सके—ताकि हर चिंगारी राख में तब्दील हो सके। औरतों के कपड़े तक जला दिए गए, जिससे वे अपने जले हुए शरीर को ढकने के लिए भी कुछ न पा सकें—इंसानियत को लहूलुहान कर देने वाली दरिंदगी।
और पुलिस? बस तमाशबीन बनी रही। उनकी आंखों के सामने सब कुछ जलता रहा—घर, इज्जत, जान... लेकिन वे हिल भी नहीं पाए, या शायद हिलने नहीं दिया गया।
ये किसी डरावनी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि अप्रैल 2025 में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हुई वह सच्ची त्रासदी है, जिसकी परतें अब कलकत्ता हाईकोर्ट की जांच में खुलने लगी हैं। और इन परतों के नीचे दिखती है सत्ता की सड़ी हुई जड़ें—टीएमसी के नेताओं की संलिप्तता, जिन्होंने इस नरसंहार को या तो अंजाम दिया या उसकी अनदेखी की। यह सिर्फ एक हिंसा नहीं थी, यह मानवता पर किया गया एक गहरा और शर्मनाक हमला था। नमस्कार दोस्तों मेरा नाम है विशाल कुमार और आप ये देख रहे है bharatidea पर।
1: हिंसा की भयावहता (2:00 – 6:00)
ये मामला 11 अप्रैल 2025 को सामने आया, जब दोपहर 2:30 बजे के बाद बेटबोना गाँव समेत कई इलाकों में अचानक हिंसा भड़क उठी।
धूलियान, पालपारा, समसेरगंज, हिजलतला, शिउलीतला, डिगरी और घोषपारा — इन सभी जगहों पर हिंदुओं के घर जलाए गए, दुकानें तोड़ी गईं, और मंदिरों को अपवित्र किया गया।
हाईकोर्ट की जांच समिति ने पाया कि:
1. 113 से ज्यादा घर जलाए गए, जिनमें से कई अब रहने लायक नहीं हैं।
2. पानी की सप्लाई काट दी गई ताकि पीड़ित आग न बुझा सकें।
3. महिलाओं के कपड़े जला दिए गए ताकि वे शर्मिंदगी झेलें।
4. मंदिरों को निशाना बनाया गया, वहाँ मूत्र तक त्याग किया गया।
5. हिंदुओं को जबरन कलमा पढ़ने के लिए मजबूर किया गया।
इस हमले में जो दर्दनाक गवाही सामने आई है, वो रूह को झकझोर देने वाली है। प्रतिमा मंडल ने जांच समिति को बताया कि उनके घर के पास एक जिंदा बम बरामद हुआ, और हमलावरों ने उनके सोने के गहने और फर्नीचर तक लूट लिए। इसी तरह कई अन्य पीड़ित—जैसे मनोज रॉय, आकाश मंडल, बिकाश मंडल, निखिल मंडल, चित्ता रॉय, बाबूल मंडल, निबारून मंडल, शम्पा मंडल, भबानंदा घोष, बसुदेब मंडल, राम मंडल, अर्जुन मंडल और लतिका मंडल—भी इस हिंसा की चपेट में आए। प्रशांत मंडल और सरस्वती मंडल ने बताया कि उनके टोटो वैन, मोटरसाइकिल, साइकिल और ट्रैक्टर को लूटकर आग के हवाले कर दिया गया। फूलचंद मंडल और पलाश मंडल, जिनका परिवार तीन लोगों का है—पति, पत्नी और एक छोटा बच्चा—ने बताया कि उनके घर को पूरी तरह तबाह कर दिया गया। हमलावरों ने भागने की कोशिश कर रही उनकी पत्नी और बच्चे पर चाकू से हमला किया, जिससे उनकी गर्दन और नाभि पर गंभीर चोटें आईं। परूल दास की गवाही और भी भयावह है—उनका कहना है कि हमलावरों ने उनके घर का दरवाजा और खिड़कियां तोड़ दीं, बोतलें और पत्थर फेंके, और फिर उनकी पत्नी और बेटे को अगवा कर लिया। सभी हमलावर अपने चेहरों को कपड़ों से ढंके हुए थे, ताकि उनकी पहचान न हो सके। ये बयान सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि उस इंसानी त्रासदी की चीख हैं जिसे अनसुना नहीं किया जा सकता।
इस हिंसा की कुछ कहानियाँ ऐसी हैं जिसको सुनकर रूह कांप उठती है। हरगोविंदा दास—74 साल के बुजुर्ग, और उनके 40 साल के बेटे चंदन दास... इन्हें उनके ही मुस्लिम पड़ोसियों ने कुल्हाड़ी से काट डाला। सबसे दर्दनाक बात ये थी कि एक शख्स वहीं खड़ा रहा—जब तक दोनों की जान नहीं चली गई। यह दिल दहला देने वाली घटना 12 अप्रैल को हुई। और इस हत्याकांड के बाद इलाके में ऐसा डर छा गया कि उनके अंतिम संस्कार में भी लोग दूरी बनाकर खड़े रहे। कृष्णा चंदा पाल ने बताया कि हमलावरों ने उनके घर से करीब 17 लाख रुपये के सोने के गहने और फर्नीचर लूट लिए। वे घर के पीछे के दरवाज़े से घुसे और सीधे परिवार पर हमला किया।जय राम पाल ने बताया कि उनकी रोज़ी-रोटी—मिट्टी के बर्तनों की दुकान और एक छोटा साइबर कैफे—उसे जला कर राख कर दिया गया। एक ही रात में सब कुछ खत्म कर दिया गया। ये घटनाएँ सिर्फ हिंसा नहीं थीं, ये इंसानियत के खिलाफ खुला युद्ध था—जिसमें न उम्र देखी गई, न रोज़गार, न परिवार... बस आग, खून और चीखें थीं।
"इस रिपोर्ट में सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह है कि इस हिंसा में TMC के नेताओं का सीधा हाथ था।
1. पार्षद मेहबूब आलम हमलावरों के साथ मौके पर मौजूद था और उसने ही हिंसा को अंजाम दिया।
2. विधायक अमीरुल इस्लाम ने उन घरों को चिन्हित किया जिन्हें अभी नहीं जलाया गया था।
3. पुलिस ने जानबूझकर कोई कार्रवाई नहीं की, हालांकि थाना सिर्फ 300 मीटर दूर था।
"यह साफ है कि यह हिंसा वक्फ बिल के विरोध के नाम पर की गई, लेकिन असल मकसद हिंदुओं को निशाना बनाना था। और इसके पीछे TMC की राजनीतिक मंशा थी।"
"सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब यह हिंसा हो रही थी, तब:
1. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोई बयान नहीं दिया।
2. ज्यादातर मुख्यधारा के मीडिया ने इस खबर को चलाया ही नहीं।
3. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी देरी से प्रतिक्रिया दी।
*"लेकिन कुछ स्वतंत्र मीडिया संस्थानों ने इसकी विस्तृत रिपोर्टिंग की, जिसके बाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया।"
अब सवाल है क्या पीड़ितों को न्याय मिलेगा? क्या TMC के इन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई होगी? क्या पीड़ितों को न्याय मिल पाएगा?
1. मेहबूब आलम और अमीरुल इस्लाम पर केस बनना चाहिए।
2. पुलिस की लापरवाही की जांच होनी चाहिए।
3। पीड़ितों को मुआवजा और सुरक्षा दी जानी चाहिए।
"लेकिन क्या बंगाल सरकार इस रिपोर्ट पर अमल करेगी? या फिर यह केस भी राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा?"*
मुर्शिदाबाद की हिंसा सिर्फ एक दंगा नहीं थी, यह सुनियोजित तबाही थी। घोषपारा इलाके में 29 दुकानें जला दी गईं या तोड़ दी गईं। एक पूरा बाजार—जहाँ कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स, किराने का सामान बिकता था— उसे लूट लिया गया। मंदिरों तक को नहीं बख्शा गया—उनके सामने पेशाब किया गया और हिंदुओं को जबरन कलमा पढ़वाया गया। बेटबोना गाँव में 113 घर पूरी तरह बर्बाद कर दिए गए। महिलाएं डर से अपने रिश्तेदारों के घरों में शरण लेने को मजबूर हो गई। पुलिस? महज़ 300 मीटर दूर होने के बावजूद मूकदर्शक बनी रही। पीड़ितों ने फोन किए, गुहार लगाई—लेकिन कोई नहीं आया। जांच समिति ने इसे पुलिस की घोर लापरवाही और मिलीभगत करार दिया है। यह इंसाफ की नहीं, इंसानियत की हार की कहानी है।
"यह सिर्फ मुर्शिदाबाद की कहानी नहीं, बल्कि उस सिस्टम की कहानी है जहाँ सत्ता के लिए एक समुदाय को निशाना बनाया जाता है। अगर आपको लगता है कि यह मामला सिर्फ बंगाल तक सीमित है, तो आप गलत हैं। यह टेस्ट केस है कि क्या बंगाल में कानून का राज बचा है या नहीं।" क्यूं बंगाल में अब हिंदू सुरक्षित है। क्या बंगाल में अब राष्ट्रपति शासन की आवश्यकता है।
"अगर आपको यह रिपोर्ट महत्वपूर्ण लगी, तो इस वीडियो को शेयर करें। #JusticeForMurshidabad हैशटैग का इस्तेमाल करके सोशल मीडिया पर अपनी आवाज़ उठाएँ। क्योंकि चुप रहना भी एक अपराध है।"*